Sunday, November 18, 2012

तुम बैठे नजरें झुकाए थे.

जुल्फ काली थी या घटा के साये थे,
जो तुम्हारे गालों को छूटे हुए लबों तक आये थे.II

फूलों को भी लगा फूल सा चेहरा तेरा,
चाँद को भी तुम चाँद नज़र आये थे II

रौनक फीकी लगी चाँद की उस दिन,
जब तेरे आँचल में सितारे झिलमिलाये थे.II

हवाओं ने भी पढ़ ली भाषा उनकी
चन्द ख़त जो तुमने आँचल में छिपाए थे II

कोई भी डूब जाता तेरे नैनों के सागर में,
गनीमत थी की तुम बैठे नजरें झुकाए थे.II

                   
                         -   डॉ . पंकज  मिश्रा 

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