Sunday, February 16, 2014

हो सकता है कि.....

हो सकता है कि इस दुनिया कि भीड़ में,
हम भी खो जाएँ कहीं||

न रहे अगर इस जहाँ में तो,
सितारें बनकर झिलमिलाएंगे कहीं ||

चांदनी रात में हम भी देखेंगे तुम्हे,
जब बेचैन होकर तन्हा जाओगे कहीं ||

तेरी पलकें जब भी भीगेंगी कभी,
मेरी भी आँखों से बरसात होगी कहीं ||

उन रास्तों से हवा बनकर गुजर जाउंगा,
जिन रास्तों से तू निकलेगी कभी ||

क्योंकि मुझे भी डर है कि कोई काँटा,
इन पैरों में चुभ न जाएँ कहीं ||


डॉ. पंकज मिश्रा

Saturday, February 15, 2014

एक अनोखा सपना देखा

एक अनोखा सपना देखा
सपनो में तुम आये थे ||

बारिश , तितली और पतंगे
साथ में तुम ले आये थे ||

होली के रंगों में रंगकर
दूर से तुम मुस्काये थे ||

दीवाली का दिया जलाकर
खुशियों को फैलाये थे ||

नींद खुली तो तन्हाई थी
दूर तलक एक परछायी थी ||

आँख में बस वो सपना था
जिस सपने में तुम आये थे ||

एक अनोखा सपना देखा
सपने में तुम आये थे................

 * डॉ. पंकज मिश्रा