Monday, December 3, 2012

ज़िन्दगी इन पलों को फिर से नहीं दोहराएगी

एक  दिन ज़िन्दगी  ऐसे  मुकाम  पे  पहुँच  जायेगी ...
दोस्ती तो  सिर्फ  यादों  में  रह  जाईगी ....
हर  कप  कॉफ़ी याद  दोस्तों  की  दिलायेगी ....
और  हँसते  हँसते  फिर  आँखें  नम हो  जायेगी ...
ऑफिस  के  चम्बर  में  क्लास रूम  नज़र  आयेगा ...
पर चाहने  पर  भी  प्रोक्सी  नहीं  लग  पायेगा ...
पैसे तो  बहुत  होंगे ...मगर  उन्हें  लुटाने  की  वजह  ही  खो  जायेगी ...
जी  ले  खुलके  इस  पल  को  मेरे  दोस्त  क्यूंकि  ज़िन्दगी  इन  पलों को  फिर  से नहीं दोहराएगी // 

Sunday, November 18, 2012

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।

सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना

मुझको गलफ़त से डरना छोड़ दे,

मुझको गलफ़त से डरना छोड़ दे,
यूँ दबे तू पांव आना छोड़ दे.
 
तुझ पर भी कीचड़ उछालेगा जहाँ,
गैरों पर ऊँगली उठाना छोड़ दे.

शोले बनते हैं कभी चिंगारियां,
यूँ ग़मों को दिल में छुपाना छोड़ दे.

कुछ दिलों को ठेस भी लगती है दोस्त,
हर घडी का मुस्कुराना छोड़ दे.
 
जाने वाले लौट कर आते नहीं,
दिन रात का आंसू बहाना छोड़ दे.

- डॉ.पंकज मिश्र

मत करना.

कभी मेरे दमन को दागदार मत करना ,
बेवफाई करना मगर दिल तार - तार मत करना
 
सिमटना हो तो सिमट जाओ किसी की पलकों में ,
बिखर जाओगे फिर एतराज मत करना.

वो,मंजिल नहीं मुसाफ़िर है तेरी राहों का,
किसी मुसाफ़िर पर कभी एतबार मत करना,

बस एक शाम मेरे संग गुजरिये तो सही,
तब कहोगे की अबकी शाम ढलने की शाम मत रखना II

                                                       - डॉ . पंकज मिश्र 

ख्वाइस

कई ख्वाब आँखों में लेकर ,
खामोशियों में वो गुनगुनाती तो होगी I

मेरा नाम किताबों में लिख कर,
दांतों तले ऊँगली दबाती तो होगी I

उसकी भी नज़रें हमें खोजती होगी,
जब वो किसी महफ़िल में जाती होगी I

हर एक शाम मेरे नाम का वो
एक दीपक जलाती होगी I

एक लड़की मासूम सी मगर सुंदर सी,
ख्वाबों में मुझे देखकर शर्माती तो होगी II

डॉ . पंकज मिश्र

ज़िन्दगी

उम्र भर की ज़िन्दगी उसने भी जी,मैंने भी जी,
साथ किसके तू रही ये तू बता ये ज़िन्दगी I
जब मेरे दिल में न थी जीने की कोई खुशी,
तब मेरे जीवन में भर दी हर खुशी ये ज़िन्दगी I
उम्र भर...................................................
हट गयी जब भी कभी इन होठों की ये सुर्खियाँ,
हर खुशी तुने ही मेरी छीन ली ये ज़िन्दगी I
जाना चाह दूर जब अपनी इन्ही तनहाइयों से,
तब मेरे दिल पर लगा दी ऐसी ठोकर ज़िन्दगी I
उम्र भर......................................................
चाह था मैंने जिसे मुझको तो मिल न सका,
पर मिली उसकी जगह पर ये ग़मों की ज़िन्दगी I
उम्र भर की ज़िन्दगी उसने भी जी,मैंने भी जी,
साथ किसके तू रही ये तू बता ये ज़िन्दगी I

-डॉ . पंकज मिश्रा 

तुम बैठे नजरें झुकाए थे.

जुल्फ काली थी या घटा के साये थे,
जो तुम्हारे गालों को छूटे हुए लबों तक आये थे.II

फूलों को भी लगा फूल सा चेहरा तेरा,
चाँद को भी तुम चाँद नज़र आये थे II

रौनक फीकी लगी चाँद की उस दिन,
जब तेरे आँचल में सितारे झिलमिलाये थे.II

हवाओं ने भी पढ़ ली भाषा उनकी
चन्द ख़त जो तुमने आँचल में छिपाए थे II

कोई भी डूब जाता तेरे नैनों के सागर में,
गनीमत थी की तुम बैठे नजरें झुकाए थे.II

                   
                         -   डॉ . पंकज  मिश्रा 

Wednesday, October 31, 2012

काश!!

काश ! life Mobile की तरह होती
तो Life में अपने भी कुछ Twist होता ||
प्यार, यार, रिश्तेदार सब phonebook की Memory में होते
तो Life में सब कुछ कितना Best होता ||
अनचाहे दोस्तों को Reject करता, अनचाही Call की तरह
अनचाहे रिश्तेदारों का नाम Delet होता ||
रहता मै जब जब Girlfriend के साथ
बॉस और बीवी के लिए Network Failed होता ||
Connection Eror होता सब के लिए
जब भी बीवी के साथ Bed Room में होता
Problem आने से पहले पता चलता Balence की तरह
Solution में छोटा Recharge होता ||
सब हमसे और हम सबसे मिलते SMS की तरह
तो कोई किसी से कभी न Bore होता ||
ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहती Network की तरह
Life में कभी भी कुछ भी न Switch Off होता ||
काश ! life Mobile की तरह होती
तो Life में अपने भी कुछ Twist होता ||
- डॉ. पंकज मिश्र

Saturday, October 27, 2012

हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है

हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है

कभी धूप, कभी छाव, कभी बारिशों के संग देखे है

जैसे जैसे मौसम बदला लोगों के बदलते रंग देखे है

ये उन दिनों की बात है जब हम मायूस हो जाया करते थे

और अपनी मायूसियत का गीत लोगों को सुनाया करते थे

और कभी कभार तो ज़ज्बात मैं आकर आँसू भी बहाया करते थे

और लोग अक्सर हमारे आसुओं को देखकर हमारी हँसी उड़ाया करते थे"

अचानक ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लियाऔर हमने अपनी परेशानियों को बताना ही छोड़ दिया"

अब तो दूसरों की जिंदगी मैं भी उम्मीद का बीज बो देते है

और खुद को कभी अगर रोना भी पड़े तो हंसते - हंसते रो देते है

Friday, October 26, 2012

अच्छा लगा


आपकी वादा खिलाफी की कसम,
हर बहाना आपका अच्छा लगा.

वो नसीहत चुप मेरी सुनता रहा 
आज मुझको एक बुरा अच्छा लगा.

कल मुझे देखा था उसने प्यार से,
आज मुझको आइना अच्छा लगा.

चम्पई रंगत गुलाबी हो गयी,
कोई गुस्से में बड़ा अच्छा लगा.

जैसे हाँथो में उतर आया हो चाँद,
वो दुआ करता हमें अच्छा लगा.

जिस अदा से उसने दीवाना कहा,
आज मुझको वो बहुत अच्छा लगा.

                                                            - डॉ.पंकज मिश्र
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