Saturday, July 31, 2021

आकर मिलो तो


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ज़रा मैल मन का मिटाकर मिलो तो।
सुनो, सारे शिकवे भुलाकर मिलो तो।

दिल मे जो है, मुझको खुल कर बताओ
सच को लबों पर सजाकर मिलो तो।

अब तक खड़ा  तकता हूँ   तेरी राहें
तुम प्यार से मुझसे आकर मिलो तो।

सौंदर्य पर लिख दूँ मैं एक कविता
आँखों में काजल लगाकर मिलो तो।

क्यों चाँद पर है घिरी काली बदली
जुल्फों को रुख से हटाकर मिलो तो।

मिट जाएगा नफरतों का अंधेरा
चिरागे-मुहब्बत जलाकर मिलो तो।

भला सच को ऐसे छुपाते हो क्यों तुम!
सबको  हकीकत बताकर मिलो तो।

तुम दाग औरों  में  क्यों ढूँढते हो!
नजर आईने से मिलाकर, मिलो तो।

Saturday, July 10, 2021

। तुम मेरी हो ।

हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो ।

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो ।

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।
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Sunday, July 4, 2021

!!अच्छा लगता है!!

कभी कभी यूं ही बस  खाली रस्ते पर 
दूर तलक तक चलते जाना,
अच्छा लगता है !
कभी-कभी जब रात ढले अंबर के तारों को 
हथेलियों पर गिनते जाना,
अच्छा लगता है !!
कभी-कभी बेधड़क हो रही बारिशों में 
तन से मन तक तर हो जाना,
अच्छा लगता है !
कभी-कभी बिन मतलब के भी 
अच्छा करते जाना,
अच्छा लगता है !!
कशमकश से बेमतलब की छुपन छुपाई से 
जो दिल में है वह कह जाना,
अच्छा लगता है !
लोगों की परवाह ना कर के खुद जैसा बन कर 
खुद जैसे हो कर जी पाना,
अच्छा लगता है !!
कभी-कभी जब मुश्किलों का दौर चलता हो
 बेबाक होकर मुस्कुराना,
अच्छा लगता है !
कुछ बातें जो होती हैं पर समझ नहीं आती
 कुछ बातों का यूं हो जाना, 
अच्छा लगता है !!

Thursday, July 1, 2021

वो फूटकर रोई

अकेली हो गई इतनी अकेली फूटकर रोई।
सहेली की विदाई में सहेली फूटकर रोई।

लिपटकर पेड़ से धरती गगन महका रही थी जो,
कटा जब पेड़ तो चम्पा-चमेली फूटकर रोई।

बंटे मां-बाप और भाई, बंटे सब खून के रिश्ते,
घरों में बांटकर खुद को हवेली फूटकर रोई।

बंधी थी दो हथेली साथ रहने के इरादे से,
हथेली से अलग होकर हथेली फूटकर रोई।

पहेली हल न कर पाया कोई भी जिंदगी का जब,
पहेली जिंदगी की बन पहेली फूटकर रोई।