Monday, December 30, 2019

ll चला गजोधर कौड़ा बारा ।।

''कथरी कमरी फेल होइ गई 
अब अइसे न होइ गुजारा
चला गजोधर कौड़ा बारा ll

गुरगुर गुरगुर हड्डी कांपय
अंगुरी सुन्न मुन्न होइ जाय 
थरथर थरथर सब तन डोले 
कान क लवर झन्न होइ जाय
सनामन्न सब ताल इनारा
खेत डगर बगिया चौबारा 
बबुरी छांटा छान उचारा ... 
चला गजोधर कौड़ा बारा ll

बकुली होइ गइ आजी माई
बाबा डोलें लिहे रज़ाई 
बचवा दुई दुई सुइटर साँटे
कनटोपे मे मुनिया काँपे 
कौनों जतन काम ना आवे 
ई जाड़ा से कौन बचावे 
हम गरीब कय एक सहारा 
चला गजोधर कौड़ा बारा ll

कूकुर पिलई पिलवा कांपय
बरधा पँड़िया गैया कांपय 
कौवा सुग्गा बकुली पणकी 
गुलकी नेउरा बिलरा कांपय
सीसम सुस्त नीम सुसुवानी 
पीपर महुआ पानी पानी 
राम एनहुं कय कष्ट नेवरा 
चला गजोधर कौड़ा बारा ।।

Sunday, December 15, 2019

!! ख़ुश रहो!!

छोटी सी ज़िन्दगी है ,  हर बात में खुश रहो 
जो चेहरा पास ना हो , उसकी आवाज़ मेँ खुश रहो II

कोई रूठा हो तुमसे , उसके इस अंदाज़ में खुश रहो 
जो लौट के नहीं आने वाले , उन लम्हों की याद मेँ खुश रहो II

कल किसने देखा है , अपने आज में खुश रहो 
खुशियों का इंतज़ार किसलिए, दूसरों की मुस्कान में खुश रहो Il

क्यूँ तड़पते हो हर पल किसी के साथ को , कभी तो अपने आप में खुश रहो
छोटी सी तो ज़िन्दगी है, हर हाल में खुश रहो ..

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Thursday, August 22, 2019

चाय

इलाइची की महक ओढ़े,
अदरक का श्रृंगार कर सजी थी..
केतली की दहलीज से निकल कर,
ग्लास की डोली में बैठी थी..
इस भागते हुए वक़्त पर,
कैसे लगाम लगाई जाए..
ऐ वक़्त आ बैठ,
तुझे एक कप चाय पिलायी जाए..!!

Saturday, June 15, 2019

वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है


वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है

अकेला जब भी होता हूँ मुझे घर याद आता है

मेरी बे-साख़्ता हिचकी मुझे खुल कर बताती है

तेरे अपनों को गाँव में तू अक्सर याद आता है

जो अपने पास हों उन की कोई क़ीमत नहीं होती

हमारे भाई को ही लो बिछड़ कर याद आता है

सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें

मगर जब चोट लगती है मुक़द्दर याद आता है

मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है

नवम्बर याद आता है दिसम्बर याद आता है

*आलोक श्रीवास्तव जी