कितनी ख़ामोशियाँ सुनाते हैं
लोग जब बोलने पर आते हैं||
वो हमें रास्ता दिखाते हैं
जिन्हे हम रास्ते पर लाते हैं||
ना घर छूटा, ना राम कहलाए
फिर भी हम रोज़ वनवास पाते हैं||
अपने अंदर भी एक रावण है
क्या उसे भी कभी जलाते हैं||
बूँद हूँ मॅ वज़ूद मेरा क्या
पर समंदर भी हममें डूब जाते हैं||
क्या है उस पार खुद ही देखेंगे
लोग कुछ का कुछ बताते हैं||
ड़ा. पंकज मिश्रा
लोग जब बोलने पर आते हैं||
वो हमें रास्ता दिखाते हैं
जिन्हे हम रास्ते पर लाते हैं||
ना घर छूटा, ना राम कहलाए
फिर भी हम रोज़ वनवास पाते हैं||
अपने अंदर भी एक रावण है
क्या उसे भी कभी जलाते हैं||
बूँद हूँ मॅ वज़ूद मेरा क्या
पर समंदर भी हममें डूब जाते हैं||
क्या है उस पार खुद ही देखेंगे
लोग कुछ का कुछ बताते हैं||
ड़ा. पंकज मिश्रा