माँ !
जब भी कभी मै सोचने बैठता हूँ तो ...........
बचपन के गलियारे से लेकर जवानी की इस भागती सड़को पर हमेशा तुझे साथ पाता हूँ .
सोचता हूँ की तू न होती तो क्या अपने पैरों पर चलना संभव था ???
सोचता हूँ की तुने हर मुश्किल पल को कितना आसन बनाया .
सोचता हूँ की तू न होती तो क्या ज़िन्दगी के सही मायनो को समझ पाता ???
ये भी नही भूला हूँ जब छोटी - छोटी गलतियों पर बेलन और डंडे से पिटाई की थी .
सोंचता हूँ की तू न होती तो क्या धूप बरसात और आंधियों के साथ आज भी मै खड़ा होता ???
नही भूला ओ रातें जब रात- रात भर जग कर मुझे सुलाया था .
सोंचता हूँ की आज भी तेरे पास आकर सारी परेशानियाँ ,तनाव और डर क्यों गायब हो जाता हैं ???
सोंच कर घबरा जाता हूँ कभी कभी की तुम बिन कभी जीना पड़ा तो क्या जी सकूँगा ???
इस उत्तर की तलाश में भटक रहा हूँ
और शायद अनंत काल तक भटकता रहूँ गा .
- पंकज मिश्र
- पंकज मिश्र