बातें अच्छी लाख लगी हैं
कहना सुनना चलता रहता है
कभी इसकी कभी उसकी इधर उधर और बाक़ी सबकी
कभी हस्ते और कभी रोते तुम्हें लमहें चुनते देखा है!
बस एक बात पूछनी थी मुझको
कभी चुप रहकर भी देखा है?
क्यूँ हर बात ही कहनी है तुमको?
क्यूँ आदि हुए हो शब्दों के?
क्या अनकही उन आँखों की?
कभी कोशिश भी की है पढ़ने की?
क्यूँ वाक्य का संगीत तुम्हें मधुर सुनाई देता है?
क्यूँ हिचकते उन होंठों को कोशिश भी ना की समझने की!
जो बोला उस तक ही सीमित
क्या सन्नाटा सुनकर देखा है?
बातों के इतने जो आदि हो
कभी चुप रहकर भी देखा है?
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