Sunday, November 18, 2012

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।

सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना

मुझको गलफ़त से डरना छोड़ दे,

मुझको गलफ़त से डरना छोड़ दे,
यूँ दबे तू पांव आना छोड़ दे.
 
तुझ पर भी कीचड़ उछालेगा जहाँ,
गैरों पर ऊँगली उठाना छोड़ दे.

शोले बनते हैं कभी चिंगारियां,
यूँ ग़मों को दिल में छुपाना छोड़ दे.

कुछ दिलों को ठेस भी लगती है दोस्त,
हर घडी का मुस्कुराना छोड़ दे.
 
जाने वाले लौट कर आते नहीं,
दिन रात का आंसू बहाना छोड़ दे.

- डॉ.पंकज मिश्र

मत करना.

कभी मेरे दमन को दागदार मत करना ,
बेवफाई करना मगर दिल तार - तार मत करना
 
सिमटना हो तो सिमट जाओ किसी की पलकों में ,
बिखर जाओगे फिर एतराज मत करना.

वो,मंजिल नहीं मुसाफ़िर है तेरी राहों का,
किसी मुसाफ़िर पर कभी एतबार मत करना,

बस एक शाम मेरे संग गुजरिये तो सही,
तब कहोगे की अबकी शाम ढलने की शाम मत रखना II

                                                       - डॉ . पंकज मिश्र 

ख्वाइस

कई ख्वाब आँखों में लेकर ,
खामोशियों में वो गुनगुनाती तो होगी I

मेरा नाम किताबों में लिख कर,
दांतों तले ऊँगली दबाती तो होगी I

उसकी भी नज़रें हमें खोजती होगी,
जब वो किसी महफ़िल में जाती होगी I

हर एक शाम मेरे नाम का वो
एक दीपक जलाती होगी I

एक लड़की मासूम सी मगर सुंदर सी,
ख्वाबों में मुझे देखकर शर्माती तो होगी II

डॉ . पंकज मिश्र

ज़िन्दगी

उम्र भर की ज़िन्दगी उसने भी जी,मैंने भी जी,
साथ किसके तू रही ये तू बता ये ज़िन्दगी I
जब मेरे दिल में न थी जीने की कोई खुशी,
तब मेरे जीवन में भर दी हर खुशी ये ज़िन्दगी I
उम्र भर...................................................
हट गयी जब भी कभी इन होठों की ये सुर्खियाँ,
हर खुशी तुने ही मेरी छीन ली ये ज़िन्दगी I
जाना चाह दूर जब अपनी इन्ही तनहाइयों से,
तब मेरे दिल पर लगा दी ऐसी ठोकर ज़िन्दगी I
उम्र भर......................................................
चाह था मैंने जिसे मुझको तो मिल न सका,
पर मिली उसकी जगह पर ये ग़मों की ज़िन्दगी I
उम्र भर की ज़िन्दगी उसने भी जी,मैंने भी जी,
साथ किसके तू रही ये तू बता ये ज़िन्दगी I

-डॉ . पंकज मिश्रा 

तुम बैठे नजरें झुकाए थे.

जुल्फ काली थी या घटा के साये थे,
जो तुम्हारे गालों को छूटे हुए लबों तक आये थे.II

फूलों को भी लगा फूल सा चेहरा तेरा,
चाँद को भी तुम चाँद नज़र आये थे II

रौनक फीकी लगी चाँद की उस दिन,
जब तेरे आँचल में सितारे झिलमिलाये थे.II

हवाओं ने भी पढ़ ली भाषा उनकी
चन्द ख़त जो तुमने आँचल में छिपाए थे II

कोई भी डूब जाता तेरे नैनों के सागर में,
गनीमत थी की तुम बैठे नजरें झुकाए थे.II

                   
                         -   डॉ . पंकज  मिश्रा