"मैं ही जानता हूँ कि मुझ पर क्या बीत रही है ll
एक चुप्पी है जो भीतर ही भीतर चीख रही है ll
प्रेम की दो डोर, मजबूत भी है मजबूर भी है,
एक डोर बांध रही है, एक डोर खींच रही है ll
न तुम इस पार आ पाए, न मैं उस पार जा सका,
एक बहुत ऊंची दीवार हम दोनों के बीच रही है ll
सब सच सच बोलती है इसके बाद भी,
मेरी जीभ हमेशा से ही बत्तमीज़ रही है ll
जिंदगी दौड़ते दौड़ते गिर रही है,
गिरते गिरते दौड़ना सीख रही है ll"
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