Thursday, March 16, 2023

मुझ पर क्या बीत रही है

"मैं ही जानता हूँ कि मुझ पर क्या बीत रही है ll
एक चुप्पी है जो भीतर ही भीतर चीख रही है ll

 प्रेम की दो डोर, मजबूत भी है मजबूर भी है, 
 एक डोर बांध रही है, एक डोर खींच रही है ll

 न तुम इस पार आ पाए, न मैं उस पार जा सका, 
 एक बहुत ऊंची दीवार हम दोनों के बीच रही है ll

 सब सच सच बोलती है इसके बाद भी, 
 मेरी जीभ हमेशा से ही बत्तमीज़ रही है ll

 जिंदगी दौड़ते दौड़ते गिर रही है, 
 गिरते गिरते दौड़ना सीख रही है ll"

 ***

Friday, November 11, 2022

चिठ्ठी...💌✍️


"खो गयी वो......"चिठ्ठियाँ"...✍️
जिसमें "लिखने के सलीके" छुपे होते थे 
"कुशलता" की कामना से शुरू होते थे 
बडों के "चरण स्पर्श" पर खत्म होते थे...!!

    "और बीच में लिखी होती थी "जिंदगी"

नन्हें के आने की "खबर"
"माँ" की तबियत का दर्द 
और पैसे भेजने का "अनुनय" 
"फसलों" के खराब होने की वजह...!!

        कितना कुछ सिमट जाता था एक 
                 "नीले से कागज में"...

जिसे नवयौवना भाग कर "सीने" से लगाती 
और "अकेले" में आंखो से आंसू बहाती !

"माँ" की आस थी "पिता" का संबल थी 
         बच्चों का भविष्य थी और 
      गाँव का गौरव थी ये "चिठ्ठियां" 

"डाकिया चिठ्ठी" लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा 
देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को 
अनपढ भी "एहसासों" को पढ़ लेते थे...!!

अब तो "स्क्रीन" पर अंगूठा दौडता हैं 
और अक्सर ही दिल तोडता है 
"मोबाइल" का स्पेस भर जाए तो 
सब कुछ दो मिनट में "डिलीट" होता है...

सब कुछ "सिमट" गया है 6 इंच में 
जैसे "मकान" सिमट गए फ्लैटों में 
जज्बात सिमट गए "मैसेजों" में 
"चूल्हे" सिमट गए गैसों में 

और इंसान सिमट गए पैसों में 

Tuesday, September 6, 2022

फिर घमंड कैसा?

.   
एक माचिस की तिल्ली, 
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे, 
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है 
      आदमी की औकात !!!!

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया , 
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट ,
तो कहीं फुसफुसाहट ....
अरे जल्दी ले जाओ 
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है 
       आदमी की औकात!!!!

मरने के बाद नीचे देखा ,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त, 
तो कुछ ज़बरदस्ती 
रो रहे थे। 
नहीं रहा.. ........चला गया...
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है 
     आदमी की औकात!!!!!

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी...
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है 
    आदमी की औकात !!!!!!

जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- मेरा किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जीया...
अपने लिए कम,
कोई न देगा साथ...
जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ???

      ये है हमारी औकात!!!!

 फिर घमंड कैसा?

Thursday, August 4, 2022

ll अब नहीं मिलता ||

बड़े बरगद की छाया में खडा घर अब नहीं मिलता |
परिंदों से भरा नीला वो अंबर अब नहीं मिलता ||

शहर की गोद में खामोश पत्थर की इमारत है |
चहकता गांव में टूटा सा छप्पर अब नहीं मिलता ||

नदी भी हो गई है मौन व्याकुल सूखकर दलदल |
समर्पण कर सके जिसको वो सागर अब नहीं मिलता ||

हरे नोटों के दरवाजे में माथा टेकते हैं सब |
वृद्ध मां बाप के आगे झुका सर अब नहीं मिलता ||

यूं महलों में खड़ा बचपन तरसता सोचता है ये |
मां की गोद में आंचल का चादर अब नहीं मिलता ||

बिता दी उम्र जिस बेटे के सपने सच बनाने में |
लिफाफा भेज देता है वो आकर अब नहीं मिलता ||

Wednesday, March 30, 2022

ll फिर से... ll

जाने किस बात पे वो आज  हँसे  हैं  फिर से।
फूल  कचनार   के  आँगन  में झरे हैं फिर से।

हौले    हौले   वो हंसा और  झुका लीं पलकें,
दीप उम्मीद  के कुछ दिल में जले हैं फिर से।

सुर्ख   कुछ  और हुआ  होगा  गुलाबी चहरा,
हमने  ख्वाबों   में  नये   रंग  भरे  हैं फिर से।

उनसे  मिल कर  के  हमें  आज लगा है ऐसा,
जैसे  वीराने    बहारों   से मिले  हैं   फिर  से।

गांव   जब आओ  चलें आना  वहीं पर सीधे,
हम उसी नीम की   शाखों में  छुपे हैं फिर से।

***

Monday, March 14, 2022

होली के अवसर पर...

होली के अवसर पर... 

न रूठो तुम, चली आओ, करेंगे प्यार होली में ,
मुझे देना है अपना दिल तुम्हें उपहार होली में ।

भले आओ न आओ तुम, गिला कुछ भी नहीं तुमसे ,
करूँगा याद मैं तुमको, सनम सौ बार होली में ।

ख़ता है छेड़ना तुमको, पता है क्या सज़ा होगी ,
कहाँ कब मानता है दिल, सज़ा स्वीकार होली में ।

तेरी तसवीर में ही रंग भर कर मान लूँगा मैं ,
हुई चाहत मेरी पूरी, प्रिये ! इस बार होली में।

ज़माने की निगाहों से ज़रा बच कर चला करना ,
ख़बर क्या क्या उड़ा देंगे, सर-ए-बाज़ार होली में ।

ये फ़ागुन की हवाएँ हैं, नशा भरती हैं नस-नस में,
तुम्हारा रूप उस पर से, जगाता प्यार होली में ।

गिरी रुख़सार पर ज़ुल्फ़ें, जवानी खुद से बेपरवा ,
करे जादू तुम्हारे रूप का शृंगार होली में ।

लगाना रंग ’आनन’ को. न उतरे ज़िंदगी भर जो ,
यही है प्यार का मौसम गुल-ओ-गुलज़ार होली में ।
***

Tuesday, October 19, 2021

कभी चुप रहकर भी देखा है?

बातें अच्छी लाख लगी हैं
कहना सुनना चलता रहता है
कभी इसकी कभी उसकी इधर उधर और बाक़ी सबकी
कभी हस्ते और कभी रोते तुम्हें लमहें चुनते देखा है!
बस एक बात पूछनी थी मुझको
कभी चुप रहकर भी देखा है?

क्यूँ हर बात ही कहनी है तुमको?
क्यूँ आदि हुए हो शब्दों के?
क्या अनकही उन आँखों की?
कभी कोशिश भी की है पढ़ने की?

क्यूँ वाक्य का संगीत तुम्हें मधुर सुनाई देता है?
क्यूँ हिचकते उन होंठों को कोशिश भी ना की समझने की! 

जो बोला उस तक ही सीमित
क्या सन्नाटा सुनकर देखा है?
बातों के इतने जो आदि हो
कभी चुप रहकर भी देखा है?
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