Wednesday, March 30, 2022

ll फिर से... ll

जाने किस बात पे वो आज  हँसे  हैं  फिर से।
फूल  कचनार   के  आँगन  में झरे हैं फिर से।

हौले    हौले   वो हंसा और  झुका लीं पलकें,
दीप उम्मीद  के कुछ दिल में जले हैं फिर से।

सुर्ख   कुछ  और हुआ  होगा  गुलाबी चहरा,
हमने  ख्वाबों   में  नये   रंग  भरे  हैं फिर से।

उनसे  मिल कर  के  हमें  आज लगा है ऐसा,
जैसे  वीराने    बहारों   से मिले  हैं   फिर  से।

गांव   जब आओ  चलें आना  वहीं पर सीधे,
हम उसी नीम की   शाखों में  छुपे हैं फिर से।

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