Saturday, November 15, 2014

जब हमें ही रिश्ते निभाने हैं..


जब हमें ही रिश्ते निभाने हैं..


जब हमें ही रिश्ते निभाने हैं
रिश्तों को बिखरने से बचाने हैं !!

तो फिर जाने दो -२
नये लोगों को आने दो!!

अब तक वक़्त के साथ चलता रहा हूँ 
अब वक़्त से भी आगे निकल जाने दो!!

ठहरा रहा हूँ सदैव बंदिसों के साथ
अब बंदिसें तोड़ के बह जाने दो!!

अभी तक सुनता रहा हूँ दुनिया की
अब मेरे दिल की भी कुछ सुनाने दो!!

अभी तक परखा गया हूँ रिश्तों में 
अब मुझे भी रिश्तों को आज़माने दो !!

महसूस की है रिश्तों की ज़रूरत को सदैव 
वज़ूद मेरा भी है अपना, ये रिश्तों को बतलाने दो !!

कब कहा की मनाने से मानता नही कोई
पर थोड़ी देर के लिए ही रूठ  जाने दो !!


                                डा. पंकज

Sunday, February 16, 2014

हो सकता है कि.....

हो सकता है कि इस दुनिया कि भीड़ में,
हम भी खो जाएँ कहीं||

न रहे अगर इस जहाँ में तो,
सितारें बनकर झिलमिलाएंगे कहीं ||

चांदनी रात में हम भी देखेंगे तुम्हे,
जब बेचैन होकर तन्हा जाओगे कहीं ||

तेरी पलकें जब भी भीगेंगी कभी,
मेरी भी आँखों से बरसात होगी कहीं ||

उन रास्तों से हवा बनकर गुजर जाउंगा,
जिन रास्तों से तू निकलेगी कभी ||

क्योंकि मुझे भी डर है कि कोई काँटा,
इन पैरों में चुभ न जाएँ कहीं ||


डॉ. पंकज मिश्रा

Saturday, February 15, 2014

एक अनोखा सपना देखा

एक अनोखा सपना देखा
सपनो में तुम आये थे ||

बारिश , तितली और पतंगे
साथ में तुम ले आये थे ||

होली के रंगों में रंगकर
दूर से तुम मुस्काये थे ||

दीवाली का दिया जलाकर
खुशियों को फैलाये थे ||

नींद खुली तो तन्हाई थी
दूर तलक एक परछायी थी ||

आँख में बस वो सपना था
जिस सपने में तुम आये थे ||

एक अनोखा सपना देखा
सपने में तुम आये थे................

 * डॉ. पंकज मिश्रा