Thursday, August 4, 2022

ll अब नहीं मिलता ||

बड़े बरगद की छाया में खडा घर अब नहीं मिलता |
परिंदों से भरा नीला वो अंबर अब नहीं मिलता ||

शहर की गोद में खामोश पत्थर की इमारत है |
चहकता गांव में टूटा सा छप्पर अब नहीं मिलता ||

नदी भी हो गई है मौन व्याकुल सूखकर दलदल |
समर्पण कर सके जिसको वो सागर अब नहीं मिलता ||

हरे नोटों के दरवाजे में माथा टेकते हैं सब |
वृद्ध मां बाप के आगे झुका सर अब नहीं मिलता ||

यूं महलों में खड़ा बचपन तरसता सोचता है ये |
मां की गोद में आंचल का चादर अब नहीं मिलता ||

बिता दी उम्र जिस बेटे के सपने सच बनाने में |
लिफाफा भेज देता है वो आकर अब नहीं मिलता ||