Thursday, July 1, 2021

वो फूटकर रोई

अकेली हो गई इतनी अकेली फूटकर रोई।
सहेली की विदाई में सहेली फूटकर रोई।

लिपटकर पेड़ से धरती गगन महका रही थी जो,
कटा जब पेड़ तो चम्पा-चमेली फूटकर रोई।

बंटे मां-बाप और भाई, बंटे सब खून के रिश्ते,
घरों में बांटकर खुद को हवेली फूटकर रोई।

बंधी थी दो हथेली साथ रहने के इरादे से,
हथेली से अलग होकर हथेली फूटकर रोई।

पहेली हल न कर पाया कोई भी जिंदगी का जब,
पहेली जिंदगी की बन पहेली फूटकर रोई।

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