जाने क्यूं अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नही होते।
जाने क्यूं अब मस्त मौला
मिजाज नही होते।
पहले बता दिया करते थे,
दिल की बातें।
जाने क्यूं अब चेहरे
खुली किताब नही होते।
सुना है बिन कहे
दिल की बात समझ लेते थे।
गले लगते ही
दोस्त हालात समझ लेते थे।
तब ना व्हाटसप
ना स्मार्ट मोबाइल था l
ना फेसबुक
ना ट्विटर अकाउंट था l
एक शब्द से ही
वक़्त का मिज़ाज़ समझ लेते थे l
एक चिट्टी से ही
दिलों के जज्बात समझ लेते थे।
सोचता हूं
हम कहां से कहां आ गये l
प्रेक्टीकली सोचते सोचते
भावनाओं को खा गये।
अब भाई भाई से
समस्या का समाधान कहां पूछता है l
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान कहां पूछता है l
बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके l
अब कौन गुरु के
चरणों में बैठकर ज्ञान की परिभाषा सीखे।
परियों की बातें
अब किसे भाती है l
अपनो की याद
अब किसे रुलाती है l
अब कौन
गरीब को सखा बताता है l
अब कहां
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है l
जिन्दगी मे
हम प्रेक्टिकल हो गये हैं
मशीन बन गये है सब
इंसान जाने कहां खो गये हैं !
Unknown
No comments:
Post a Comment