Sunday, February 16, 2014

हो सकता है कि.....

हो सकता है कि इस दुनिया कि भीड़ में,
हम भी खो जाएँ कहीं||

न रहे अगर इस जहाँ में तो,
सितारें बनकर झिलमिलाएंगे कहीं ||

चांदनी रात में हम भी देखेंगे तुम्हे,
जब बेचैन होकर तन्हा जाओगे कहीं ||

तेरी पलकें जब भी भीगेंगी कभी,
मेरी भी आँखों से बरसात होगी कहीं ||

उन रास्तों से हवा बनकर गुजर जाउंगा,
जिन रास्तों से तू निकलेगी कभी ||

क्योंकि मुझे भी डर है कि कोई काँटा,
इन पैरों में चुभ न जाएँ कहीं ||


डॉ. पंकज मिश्रा

No comments:

Post a Comment