Sunday, December 8, 2013

बहुत लोगों से हम अच्छे रहे

जिसमें पानी था वो बादल आग बरसाते रहे,
लोग नावाकिफ़ हवाओं की सियासत से रहे||

कैसा मेला था कि सारा शहर जिसमें खो गया,

घर,गली और मुहल्ले आज तक सुने रहे||

उस पराए शक्स से कैसा अजब रिस्ता रहा,

आँख नम उसकी हुई हम आज तक भीगे रहे||

तेज़ आँधियों के खिलाफ अपनी जगह कायम रहे,

या ये कहो की हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे||

एक सपना टूटने का दुख:रहा सदियों तलक,

अब ये लगता है बहुत लोगों से हम अच्छे रहे||



ड़ा. पंकज मिश्रा


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