जिसमें पानी था वो बादल आग बरसाते रहे,
लोग नावाकिफ़ हवाओं की सियासत से रहे||
कैसा मेला था कि सारा शहर जिसमें खो गया,
घर,गली और मुहल्ले आज तक सुने रहे||
उस पराए शक्स से कैसा अजब रिस्ता रहा,
आँख नम उसकी हुई हम आज तक भीगे रहे||
तेज़ आँधियों के खिलाफ अपनी जगह कायम रहे,
या ये कहो की हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे||
एक सपना टूटने का दुख:रहा सदियों तलक,
अब ये लगता है बहुत लोगों से हम अच्छे रहे||
ड़ा. पंकज मिश्रा
लोग नावाकिफ़ हवाओं की सियासत से रहे||
कैसा मेला था कि सारा शहर जिसमें खो गया,
घर,गली और मुहल्ले आज तक सुने रहे||
उस पराए शक्स से कैसा अजब रिस्ता रहा,
आँख नम उसकी हुई हम आज तक भीगे रहे||
तेज़ आँधियों के खिलाफ अपनी जगह कायम रहे,
या ये कहो की हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे||
एक सपना टूटने का दुख:रहा सदियों तलक,
अब ये लगता है बहुत लोगों से हम अच्छे रहे||
ड़ा. पंकज मिश्रा
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