वो मुझे मेहन्दी लगे हाथ दिखा कर रोई...
मॅ किसी और की हूँ बस इतना बता कर रोई....
शायद उम्र भर की जुदाई का ख्याल आया था उसे...
वो मुझे पास अपने बिठा कर रोई...
दुख: का एहसास दिला कर रोई...
कभी कहती थी की मैं ना जी पाऊँगी बिन तुम्हारे...
और आज ये बात दोहरा कर रोई....
मुझसे ज़्यादा बिछड़ने का गम था उसे...
वक़्त-ए-ऱुक्सत वो मुझे सीने से लगा कर रोई...
मैं बेकसूर हूँ कुद्रत का फ़ैसला है ये...
लिपट कर मुझसे बस वो इतना बता कर रोई...
मुझ पर दुखों का पहाड़ एक और टूटता...
जब उसने मेरे सामने मेरे खत जला कर रोई...
मेरी नफ़रत और आद्वत पिघल गई एक पल में...
वो बेवफा है तो क्यों मुझे रुला कर रोई...
सब गीले-शिकवाएँ मेरे एक पल में बदल गये...
झील सी आँखों में जब आँसू सज़ा कर रोई...
कैसे उसकी मोहब्बत पर शक़ करें हम...
भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोई......
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